
मुगलसराय कोतवाली का प्रवेश द्वार जलीलपुर पुलिस चौकी
चन्दौली/संवाद सूत्र
कोतवाली, थाना, चौकी और सरकारी कार्यालयों के प्रवेश द्वार पर प्रायोजकों द्वारा बड़े सौजन्य बोर्ड लगाए गए हैं। कहीं-कहीं बोर्ड इतने बड़े हैं कि उसमें प्रोयोजक हॉस्पिटल का नाम बड़ा और थाने का नाम छोटा है। ऐेसे में कभी-कभी लोगों को यह समझने में मुश्किल होती है कि थाने में अस्पताल है कि अस्पताल में थाना। जनपद के सैयदराजा, मुगलसराय, अलीनगर थाना, जलीलपुर और चंदासी पुलिस चौकी, सीओ कार्यालय, अग्निशमन विभाग सहित कई थानों और चौकियों पर सौजन्य बोर्ड लगाए गए हैं। जलीलपुर चौकी पर लगा सौजन्य बोर्ड तो ऐसा है कि किसी को समझ ही नहीं आ सकता कि थाने में अस्पताल है या अस्पताल में थाना है। पुलिस के प्रतीक रंग में ही प्रायोजक का नाम भी लिख दिया गया है।
ऐसा कोई नियम नहीं
कोतवाली के प्रवेश द्वार पर लगे बोर्ड में हॉस्पिटल, कोचिंग, जिम, व्यापारिक संस्थाओं का नाम और प्रचार थाने के नाम के साथ संयुक्त रूप से लिखा गया है। जिससे यह प्रतीत होता है कि उक्त कोतवाली पूरी तरह से प्रचारित संस्था के द्वारा प्रायोजित है। जबकि पुलिस नियमावली या किसी सक्षम प्राधिकार की ओर से ऐसे आदेश का कोई उल्लेख नहीं प्राप्त होता है।
संवेदनशील सरकारी संस्थान की निष्पक्षता पर सवाल
इस प्रकार के विज्ञापन पुलिस कोतवाली/थाने जैसे संवेदनशील सरकारी संस्थान की निष्पक्षता पर पूरी तरह से सवाल खड़ा करते हैं। यदि कोई पीड़ित व्यक्ति न्याय की गुहार लगाने के लिए थाने पर जाता है और अगर संयोगवश आरोपी वही संस्थान या व्यक्ति है जो कि थाने को तथाकथित रूप से लिखित रूप में प्रायोजित करता नजर आता है, तो पीड़ित न केवल हतोत्साहित होता है, बल्कि उसके मन में पुलिस व न्याय व्यवस्था को लेकर संशय की स्थिति पैदा हो जाती है। संयोगवश यह गलत परंपरा प्रत्येक थानों पर फैलती जा रही है। जिससे ‘थाना मैनेज करने’, ‘थाने में सेटिंग होने’ के मुहावरे प्रचलित हो चले हैं। जो न केवल पुलिस प्रणाली बल्कि लोकतंत्र में निष्पक्षता के सवाल को संदिग्ध बना रहा है। यह प्रचलन एक फैशन के रूप में उभरता जा रहा है जिसके माध्यम से रसूखदार अपना नाम थानों के ‘माथे’ पर लिख देना चाहते हैं जबकि आम जनता इससे गुमराह व भयभीत हो रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता ने डीजीपी और कमिश्नर से की शिकायत
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अवधेश दीक्षित ने थाने पर लगे सौजन्य बोर्ड के खिलाफ लिखित शिकायत डीजीपी, यूपी पुलिस और वाराणसी के कमिश्नर से की है। उन्होंने बताया कि यह पूरी तरह से अंवैधानिक है। उन्होंने अधिकारियों से अविलंब इस पर हस्तक्षेप की मांग की है। शिकायत में लिखा है कि यह पूरी तरीके से पुलिस की छवि को धूमिल करने जैसा है। रसूखदार और पैसे वाले लोग थाने के माथे पर अपने संस्थान का नाम लिखवाकर खुद को भुनाने में लगे हैं। मामले में सीओ सदर अनिल राय ने कहा कि थाने में सौजन्य बोर्ड लगाने का कोई नियम नहीं है। मेरे आने के से पहले ये लगे हैं। जांच कराकर इन्हें जल्द हटवाया जाएगा।