कौशाम्बी संवाद सूत्र।
यमुना की तराई इलाके में कछार की जो जमीन यमुना नदी की संपत्ति होती है राजस्व अभिलेख में कछार की जमीन सरकारी है इन जमीनों पर तमाम लोग फसल की बुवाई कर पूरे साल फसल की बिक्री से लाखों की रकम अर्जित करते हैं। बरसात के महीने में यमुना नदी में बाढ़ आने के बाद कछार की फसल नष्ट होने का रोना रो करके शासन से लेकर के प्रशासन तक की सहानुभूति लेते हैं और सहानभूति के आड़ में सरकार से फसल नुकसान का मुआवजा भी लेते हैं इस मामले में संबंधित क्षेत्र के लेखपाल की भूमिका भी सवालों के घेरे में होती है कि जब सरकारी जमीन पर इन्होंने फसल तैयार करने की कोशिश की तो सरकारी जमीन पर फसल तैयार करने के लिए इन्हें पूर्व से रोका क्यों नहीं गया है और यमुना के कछार के इलाके में बाढ़ आना स्वाभाविक है प्रकृति के नियम को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है लेकिन उसके बाद भी यमुना के कछारी इलाके की सरकारी जमीन में बाढ़ से फसल की बर्बादी का रोना रो करके सरकार से मुआवजा लिए जाने की शुरू हुई यह प्रथा 30 वर्षों बाद भी नहीं बंद हो सकी है आखिर झूठे तरीके से सहानुभूति के साथ सरकारी मुआवजा लेने की इस प्रथा पर कब रोक लगेगी।