लखनऊ/कार्यालय
उत्तर प्रदेश में पत्रकारों की क्या स्थिति है यह किसी से छिपा नही है और यह स्थिति कोई आज से नही हुई बल्कि हमेशा ही पत्रकार निशाने पर रहा है। वह चाहे किसी की भी सरकार क्यों न रही हो। यही कारण है कि पत्रकार यदि सरकार के खिलाफ लिखे तो एफआईआर, अपराधी के खिलाफ लिखे तो हत्या और न लिखे तो बिकाऊ। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए न तो कोई कानून है और न ही इनकी आवाज उठाने के लिए संगठन। खुद को पत्रकारिता का महामहिम बताने वाले चंद लोग शायद ही कभी पत्रकारों के हित में कोई धरना प्रदर्शन किया हो। इतना ही नही जिन संस्थानों में पत्रकार नौकरी करता है वह खुद भी कभी पत्रकार की पीड़ा के लिए आगे नही आये। यही सब कारण है कि आज पत्रकार कहीं से भी सुरक्षित नही है। उसे कभी भी और कहीं भी कुछ भी हो सकता है। पत्रकारिता तो नाम मात्र के लिए लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है। क्योंकि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को सभी प्रकार से सुरक्षा और सहयोग तो मिल जाता है लेकिन चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकार के पास केवल एफआईआर, मुकदमा और अपराधी की गोली मिलती है, आखिर उसकी सुरक्षा का प्रबंधन क्यों नही है? और लोगों को अपेक्षाएं भी रहती है कि एक पत्रकार उनकी समस्या को सरकार तक पहुंचाए। अर्थात इन सभी स्तम्भों में सबसे ज्यादा आम आदमी के संपर्क में एक पत्रकार ही होता है।
इसी तरह फतेहपुर जिले के पत्रकार अजय भदौरिया पर स्थानीय प्रशासन ने एफआईआर दर्ज करा दी, जिसके खिलाफ जिले के तमाम पत्रकारों ने जल सत्याग्रह शुरू कर दिया था। बताया जाता है कि अजय भदौरिया ने एक नेत्रहीन दंपत्ति को लॉकडाउन में राशन से संबंधित समस्याओं का उल्लेख करते हुए जिले में चल रहे कम्यूनिटी किचन पर सवाल उठाए थे।
पिछले वर्ष 2019 मिर्जापुर में मिड डे मील में धांधली पर समाचार लिखने वाले पत्रकार पर भी एफआईआर दर्ज हो गयी। यहां के डीएम ने एफआईआर की बड़ी दिलचस्प वजह बताई कि आखिर समाचार पत्र का पत्रकार वीडियो कैसे बना सकता है? आपको बता दें कि इस मामले में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भी हस्तक्षेप करना पड़ा था।
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December 6, 2023