लखनऊ ब्यूरो
जब सबको पता है कि सर्वाधिक 37 प्रतिशत 8,398 मौतें फर्राटा भरने यानी ओवरस्पीडिंग की वजह से वर्ष 2019 में हुई हैं तो फिर इस ओर संसाधन बढ़ाने पर ध्यान क्यों नहीं? परिवहन विभाग के पास पूरे प्रदेश में महज छह इंटरसेप्टर हैं। उनका नंबर लगता है कि वह किस दिन किस जिले की जांच करेंगे? बची कसर अभियान के दौरान कोढ़ में खाज महकमों के बीच तालमेल और उनकी इच्छाशक्ति में कमी पूरी कर देता है। हाल यह है कि जुगाड़ के अफसरों के सहारे प्रदेश का चेहरा कहे जाने वाले ट्रांसपोर्टनगर संभागीय परिवहन कार्यालय में काम चलता है। अधिकारियों की स्थाई तैनाती तक नहीं है। बीते त्योहारों के दौरान भी जुगाड़ के अधिकारियों के सहारे ही काम चलता रहा। पता नहीं ऐसे कौन से कारण हैं कि जिनकी वजह से जिम्मेदार अधिकारियों की तैनाती तक नहीं कर पाए हैं।
सिपाही नहीं गिने-चुने होमगार्ड के बल पर चलते हैं अभियान
परिवहन विभाग के पास सिपाही तक नहीं हैं। सरकार के लिए राजस्व जुटाने वाले इस महकमे के पास टीम का ही पूरा अभाव है। जांच के दौरान कई बार हमला तक हो चुका है। उसके बाद भी अभियानों की तो फेहरिश्त तिथिवार जारी कर दी जाती है। लेकिन कर्मचारी न होने की वजह से पुलिस का सहयोग लेकर ही अभियान चल पाता है। अगर पुलिस या होमगार्ड मिले तो कार्रवाई नहीं तो औपचारिकताएं पूरी आंकड़ा किसी तरह पूरा कर लिया जाता है। शहर के विस्तार को देखते हुए तय पद ही पहले के सापेक्ष कम है लेकिन तय नियमों के सापेक्ष भी अधिकारियों की तैनाती नहीं है।
दलालों के आगे सिस्टम नतमस्तक
लोगों की सबसे अहम जरूरत ड्र्राइविंग लाइसेंस होता है। जब इसके लिए ही जुगाड़ की टीम हैतो दलालों का प्रवेश आरटीओ कार्यालय में कैसे रुकेगा यह यक्ष प्रश्न है? ऐसे में आरटीओ कर्मी और दलालों का गठजोड़ डंके की चोट पर चलता है। टाइम स्लॉट का खेल ऐसा खेला जाता हैकि आवेदक घनचक्कर बना आरटीओ कार्यालय में चक्कर लगाता फिरता है। वजह यह हैकि डीएल के लिए आवेदकों को अपने प्रपत्रों की जांच, टेस्ट समेत विभिन्न प्रक्रिया के लिए टाइम स्लॉट लेना पड़ता है। रात जैसे ही 12 बजते हैं दलाल सक्रिय हो जाते हैं और सारा टाइम स्लॉट अपने क्लाइंट के लिए भर लेते हैं। जब दूसरे दिन आवेदक ऑनलाइन प्रक्रिया पर नजर मारता हैतो तारीख फुल मिलती है। एक आध बार कार्यालय में जुगाड़ के अफसरों और कर्मियों के पास चक्कर लगाता है। उसके बाद वह दलाल की शरण में चला जाता है। ऐसे में लोगों की सहूलियत के लिए बनी ऑनलाइन डीएल व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
‘यह सही है कि जरूरत के लिए स्टॉफ की भारी कमी है। जो है भी उनमें से अधिकांश कोरोना समेत किसी न किसी कारण से छुट्टी पर है। प्रवर्तन और प्रशासन दोनों में सबसे अहम पदों के लिए भी अभी स्थाई तैनाती नहीं हो पाई है। इसी टीम के सहारे ही सड़क सुरक्षा सप्ताह, जागरूकता कार्यक्रम, अभियान और डीएल, टेस्ट समेत सभी कार्य पूरे कराए जाते हैं जिससे अड़चन आती है। -विदिशा सिंह,आरटीओ प्रवर्तन
त्योहारी सीजन में भी जब डीएल और पंजीयन काम का सबसे ज्यादा दबाव था उस वक्त भी किसी तरह काम चलाया गया। दलालों का प्रवेश परिसर में रोका जाता है। उन्हें पुलिस को भी सौंपा जाता है। लेकिन ठोस अभियोग न पाने की वजह से वह बच निकलते हैं। कर्मियों को भी चेतावनी दी जाती है। कई बार परिसर की अचानक जांच की जाती है। सख्तीऔर बरती जाएगी।‘ -रामफेर द्विवेदी, संभागीय परिवहन अधिकारी प्रशासन
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December 6, 2023