वाराणसी/भेलूपुर संवाददाता
संतान की कामना और पुत्र की चाहत में भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की षष्टी (लोलार्क छठ ) पर भदैनी स्थित लोलार्ककुंड पर होने वाला स्नान इस वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना की भेंट चढ़ गया। शासन के निर्देशानुसार भीड़ होने वाले धर्मिक कार्यक्रमों को स्थगित करने के आदेश को ध्यान में रखते हुए पुलिस प्रशासन और मेला कमिटी के बीच वार्ता हुई। वार्ता में मेला कमेटी द्वारा लिखित रूप से जिला प्रशासन को अवगत कराया गया कि इस वर्ष लोलार्क कुण्ड पर मेला भी आयोजित नहीं किया जाएगा। ज्ञातव्य हो कि लोलार्क छठ पर संतान की कामना को लेकर कई राज्यों से स्नान के लिए लाखों श्रद्धालु आते है।
यह है लोलार्ककुंड की मान्यता
लोलार्क छठ वास्तव मे भगवान भास्कर के ओज-तेज के वंदन का पर्व है। लाखों लोगों का मानना है कि इस विशेष तिथि पर भगवान सूर्य कीकिरणें विशिष्ट रूप से बनाए गए कुंड को विशेष आभा और ओज देती है और कुंड मे स्नान से संतान प्राप्ति का योग बनता है। कुंड के उपर दिवार पर उकेरे गए सूर्य की उपासना का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता के अनुसार संतति कामना से कुंड मे डुबकी लेने वाले श्रद्धालु अपने गीले वस्त्र आभूषण कुंड मे ही छोड़ देते है। नुकीली सुईयों से बिंधे हुए फल चढ़ाने का भी विधान है। वास्तव मे ये सुईया सूर्य की तेजस्वि किरणों की प्रतीक होती है इस अवसर पर संयम को दृढ़ता देने के लिए मनचाहे फल को त्यागने का संकल्प भी लेना पड़ता है।
क्रींम कुंड पर भी मेले की छटा
सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा के अनुसार अघोरा आचार्य बाबा कीनाराम की तपोस्थली रवीन्द्रपुरी स्थित अघोरपीठ आश्रम मे भी श्रद्धालुओ की भीड़ देखने को मिलती है । आस्था की डोर से बंधे हजारों श्रद्धालु लोलार्कछठ पर आश्रम के सिद्ध सरोवर क्रींम कुंड मे पुण्य की डुबकी लेने के लिए आते हैं । मान्यता है कि इस विशेष अवसर पर क्रींम कुंड मे स्नान से पुत्र प्राप्ति की बाधा तो दूर होती ही है। असाध्य चर्म रोगों से भी मुक्ति मिलती है।
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December 6, 2023