फतेहपुर,संवाददाता,/
क्या इस पर आसानी से विश्वास किया जा सकता है कि जनपद की सरकारी मशीनरी भू-माफियाओं के इशारे पर काम कर रही है और दर्जनों बीघे सरकारी जमीन पर अवैध कब्जेदारो की बेदखली से संबंधित यहां के पूर्व कलेक्टर जितेन्द्र कुमार का एक महत्वपूर्ण आदेश सरकारी अभिलेखो से गायब हो चुका है। इतना ही नहीं इस आदेश पर उच्च न्यायालय इलाहाबाद से लिया गया स्टे ऑर्डर को बैकेट हुए कई वर्ष गुजर चुके हैं, बावजूद इसके उसके अनुपालन की फिक्र किसी को नहीं है। या यू कहें कि इस अंधेरगर्दी के लिए काफ़ी हद तक सरकारी सिस्टम जिम्मेदार है। यहां पर यह कहना शायद गलत न होगा कि सत्ता के अलंबरदारों के संरक्षण वाले भू-माफियाओं ने नगर पालिका परिषद (फतेहपुर) एवं गैर आबाद ग्राम सभा भरहरा व झलहा की 46 बीघे के करीब सरकारी जमीन को या तो बेच खाया है या फिर अवशेष जमीन पर बलात कब्जा कर रखा गया है, जिन पर “योगी के नौकशाह हाथ डालने से कतराते रहे हैं”।
गौरतलब है कि लगभग 21 वर्ष पूर्व हुए तत्कालीन डीएम के एक चर्चित आदेश पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निर्गत स्थगनादेश के बैकेट हो जाने के बाद गेंद एक बार फिर प्रशासन के पाले में आ गई है। देखने वाली बात यह है कि अवैध कब्जेदारो से इस सरकारी जमीन को मुक्त कराने के बाबत योगी का तन्त्र कितना सफल होता है। फिलहाल इस जीत को प्रशासन फाइलों में दबाये बैठा है। इसमें बंजर, पशुचर, चरागाह, तालाब व ग्राम सभा की जमीने शामिल है, जिसे 1958 के पूर्व की चकबंदी में घालमेल करके दर्जनभर के करीब अलग-अलग लोगों के नाम दर्ज कर दिया गया था। जिसका मुकदमा डीडीसी के यहा 23 वर्ष तक चला, जिसे 2002 में विराम दिया गया।
उल्लेखनीय है कि तत्कालीन कलेक्टर (डीएम) जिला उपसंचालक चकबंदी जितेंद्र कुमार ने 23 सितम्बर 2002 को विविध वाद संख्या- 3/2001- 2002 धारा 48 (3) उ० प्र० जोत चक०अधि० मौजा-भरहरा, परगना व तहसील व जिला फतेहपुर, सरकार बनाम बिटानी देवी पत्नी राम स्वरूप आदि में किये गये आदेश का मजमून कुछ इस तरह है। पैरा नं० 1-ग्राम भरहरा के जोत चकबंदी आकार पत्र 23 के गाटा संख्या-103 क्षेत्रफल 0.719 हे० में अंकित श्रीमती बिट्टन देवी पत्नी राम स्वरूप नि० सिविल लाइन फतेहपुर का नाम पृथक करके गाँव सभा बंजर खाते में दर्ज किया जावे। इसी प्रकार ग्राम भरहरा के जोत चकबंदी आकार पत्र 23 के गाटा संख्या 103 क्षेत्रफल 0-12-1.1/4 व गाटा संख्या 106 क्षेत्रफल 1-12-2 से सुन्दर लाल पुत्र ईश्वरदीन निवासी ग्राम झलहा हाल मो० आबूनगर, फतेहपुर का नाम प्रथक करके गाँव सभा बंजर खाते में अंकित करने के आदेश हुए थे। इसी प्रकार ग्राम भरहरा के जोत चकबंदी आकार पत्र-23 के गाटा संख्या-195 क्षेत्रफल 0.0971 हे० में अंकित अनन्तराम पुत्र लालाराम निवासी मोहल्ला मसवानी, शहर फतेहपुर व भगवानदीन पुत्र राम गुलाम निवासी महारथी शहर फतेहपुर का नाम प्रथक करके गाँव सभा बंजर खाते में अंकित करने का भी आदेश हुआ था। ग्राम सभा भरहरा की जोत चकबंदी आकार पत्र-23 के गाटा संख्या 177 क्षेत्रफल 3-11-0 में अंकित अभिमन्यु सिंह पुत्र अर्जुन सिंह निवासी ओती का नाम खारिज करके ग्राम सभा के पशुचर खाते में अंकित करने, ग्राम सभा भरहरा की जोत चकबंदी आकार जोत चकबंदी आकार पत्र-23 के गाटा संख्या-69 क्षेत्रफल 0.3804 हे० में अंकित श्रीमती मिथिलेश देवी पत्नी अमरनाथ निवासी आबूनगर, फतेहपुर का नाम प्रथक करके ग्राम सभा पशुचर खाते में अंकित करने, गाटा संख्या-225 क्षेत्रफल 0.2428 हे० में अंकित अनन्तराम पुत्र लालाराम व भगवानदीन पुत्र रामगुलाम निवासी मसवानी, फतेहपुर का नाम हटाकर ग्राम सभा चरागाह में अंकित करने, गाटा संख्या-98 क्षेत्रफल 0.2408 हे० में अंकित श्रीमती बिट्टो देवी पत्नी राम स्वरूप निवासी सिविल लाइन, फतेहपुर का नाम अंकित करके ग्राम सभा चारागाह के खाते में अंकित करने का आदेश हुआ था। इसी क्रम में उपरोक्त ग्राम सभा का गाटा संख्या-231 क्षेत्रफल 0.5800 में अंकित श्रीमती मिथलेश देवी पत्नी अमरनाथ निवासी आबूनगर का नाम खारिज कर तालाब अंकित करने एवं उक्त ग्राम सभा के गाटा संख्या 167 क्षेत्रफल 2-15-17.5 व गाटा संख्या-168 क्षेत्रफल 0-12-4.5 में अंकित सुन्दर लाल पुत्र ईश्वरदीन निवासी ग्राम झलहा हाल मो० आबूनगर का नाम काटकर इस जमीन को ग्राम सभा के खाते में अंकित करने के स्पष्ट आदेश दिये गये थे।
तत्कालीन डीएम द्वारा विगत 23 सितम्बर 2002 को जिला उपसंचालक चकबंदी की हैसियत से कड़ा आदेश तो कर दिया किन्तु उनके मातहतो ने इस आदेश के अनुपालन की दिशा में बिलकुल भी गम्भीरता नहीं दिखाई। या यू कहे कि राजस्व विभाग ने दूसरे पक्ष को उच्च न्यायालय जाने का भरपूर अवसर दिया। नतीजतन इसरत अली पुत्र अहमद अली नि० बाकरगंज, फतेहपुर ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद में इस आदेश को चुनौती दी, जिस पर हाईकोर्ट ने 19 दिसम्बर 2002 को इस आदेश के क्रियान्वयन पर तीस दिन के लिये रोक लगाते हुए दो माह के अंदर ग्राम सभा भरहरा ब्लाॅक तेलियानी जनपद फतेहपुर जरिये ग्राम प्रधान को काउण्टर एफीडेविट व रिजाइंडर लगाने के आदेश दिये किन्तु इसी बीच डीएम जितेंद्र कुमार का तबादला हो जाने के कारण उच्च न्यायालय में आशातीत पैरवी न होने से यह स्थगनादेश लगभग 16 वर्षों तक सरकारी दस्तावेजो में आधार बना रहा।
सूत्रों की माने तो इस दौरान उपरोक्त जमीनो के अवैध कब्जेदारो ने सिस्टम की लचरता का फायदा उठाकर ज्यादातर जमीनें बेच डाला। जिनमे अधिकांश में निर्माण भी हो गये है। रिहायशी विभाग ने कईयों के बाकायदे नक्शे भी पास कर दिये। इसी बीच विगत 13 दिसम्बर 2017 को उच्च न्यायालय के जज विवेक कुमार बिरला की कोर्ट ने उपरोक्त रिट याचिका नम्बर 54600 वर्ष 2002 को मूल रूप से खारिज कर दिया और यहा के कलेक्टर (डीएम फतेहपुर) व डीडीसी को आदेश की प्रति भी भेज दी किन्तु करीब छः वर्ष गुजरने के बावजूद व्यवस्था पालको ने जमीन खाली कराने की दिशा में एक भी कदम आगे नहीं बढ़ाया है। इतना ही नहीं तत्कालीन डीएम जितेन्द्र कुमार के इस मद में 23 सितम्बर 2002 के स्पष्ट आदेश का अभी तक लेशमात्र भी अनुपालन नहीं हो सका है, जो “खस्ताहाल सिस्टम की अजब कहानी” को बया करता है। इसमें “बंजर, पशुचर, चरागाह, तालाब व ग्राम सभा” की जमीने शामिल है।
समूचे प्रकरण की है अजब कहानीः उपरोक्त मामले में प्रकाश में आया है कि तत्कालीन डीएम जितेन्द्र कुमार के आदेश से प्रभावितो में “इसरत अली” नाम का कोई भी “खातेदार नहीं था”, बावजूद इसके इसरत अली ने “हाईकोर्ट में आदेश को चुनौती” दी। आदेश पर स्टे की मियाद 30 दिन थी, किन्तु राजस्व विभाग के अधिकारियों द्वारा सलीके से पैरवी नहीं की जिससे लगभग 15 वर्षों तक मामला कानूनी पचड़े में पड़ा रहा। इस दौरान लगभग सारी जमीन बिक गई और ज्यादातर में निर्माण भी हो गया। इतना ही नहीं छः वर्ष से अधिक का समय स्टे बैकेट हुए हो गया लेकिन प्रशासन ने इस सरकारी जमीन को खाली कराने की दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाया है। बड़ी बात यह भी है कि पूर्व डीएम आंजनेय कुमार सिंह के अतिक्रमण हटाओ महामिशन से भी इस आदेश को बड़ी ही सफाई से बचाया गया और “मौजूदा डीएम” तक भी इस मामले की पत्रावली को नहीं पहुँचने दिया गया। इस मामले में कई पूर्व व मौजूदा प्रशासनिक अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की ओर भी उगलिया उठना लाजिमी है। इस सम्बंध में पूर्व व मौजूदा उप जिला अधिकारियों और सदर तहसीलदारों की भूमिका पर भी सवाल उठते रहे हैं। गौरतलब है कि यह हैरत अंगेज मामला मोदी सरकार में ग्रामीण विकास राज्य मन्त्री “साध्वी निरंजन ज्योति” के निर्वाचन क्षेत्र से जुड़ा है, जो प्रायः सरकारी जमीनो के मामले में गम्भीर होने का दावा करती रहीं है। उपरोक्त मसले पर जब सम्बन्धित अधिकारियों से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया तो वह कुछ भी कहने से बचते रहे।
हाल में प्रदेश के मख्यमंत्री को इस बाबत भेजे गए एक शिकायतीपत्र में एक पूर्व जनप्रतिनिधि ने किसी बाहरी एजेंसी से इस बड़े मामले की जांच कराने की मांग की है। इस बड़े खेल में चर्चित नाम “शानू” का उल्लेख किया गया है, जिस पर स्थानीय एक माननीय का वरदहस्त और व्यवसायिक रिस्ते होने का हवाला दिया गया है। इस पत्र में विस्तार से स्थानीय अधिकारियों की भूमिका को न सिर्फ़ आरोपित किया गया है बल्कि “महराज जी” से त्वरित कार्यवाही की अपेक्षा की गई है।