फतेहपुर/नि.संवाद।
हुसैनगंज थाना क्षेत्र के भगलाकापुरवा के मूल निवासी स्व.ओंकारनाथ द्विवेदी के पुत्र डा. अरुण कुमार द्विवेदी और उनकी पत्नी श्रीमती नीरजा द्विवेदी की एकमात्र संतान 29 वर्षीय कु. काव्या ने जनपद को गौरवान्वित किया, जब उन्होंने अपने देश से हजारों मील दूर ताइवान में कड़ी मेहनत के बाद डॉक्टरेट की उपाधि अर्जित की। ज्ञातव्य हो कि वर्तमान में उनके पिता नाशिक स्थित संदीप यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं।
उन्होंने DEVELOPMENT AND OPTIMIZATION OF ADDITIVELY MANUFACTURED FLOW STRAIGHTENERS AND NOVEL ANODE MATERIALS TOWARDS SCALE UP AND ANTIBIOTIC REMOVAL APPLICATIONS OF MICROBIAL FUEL CELLS
(माइक्रोबियल फ्यूल सेल के विकास और अनुकूल रूप से निर्मित फ्लो स्ट्रेटनर और नोवेल एनोड सामग्री का विकास और अनुकूलन) जैसे अछूते विषय पर प्रतिष्ठित नेशनल ताइवान विश्वविद्यालय, ताइपे से लगातार 4 वर्ष और 4 महीने तक कड़ी मेहनत करके डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। यह एक ऐसा विषय है जिस पर भारत में अभी बहुत कम काम हुआ है। माइक्रोबियल फ्यूल सेल (एमएफसी) एक ऐसी प्रक्रिया है। जो कार्बनिक पदार्थों को अपशिष्ट जल में सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए सूक्ष्म जीवों का उपयोग करती है। अपशिष्ट निस्तारण की प्रक्रिया के दौरान कचरे से ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए पूरी दुनिया दिलचस्पी दिखा रही है। शैवाल-आधारित प्रणालियों की तुलना में माइक्रोबियल ईंधन सेल अपशिष्ट जल से लाभकारी रूप से बिजली उत्पन्न कर सकते हैं। यदि यह तकनीक साकार रूप लेती है तो इससे भारत जैसे विकासशील देशों को बहुत लाभ हो सकता है।
विदेश से आई इस खबर के बाद चौक स्थित उनके ननिहाल में जश्न मनाया गया। उनके मामा मनस्वी तिवारी ने बताया कि उनकी भांजी हमेशा से बड़ी मेहनती और मेधावी थी और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक बनकर देश सेवा करना चाहती थी। उसकी मेधाशक्ति से प्रभावित होकर भारत और ताइवान सरकार ने उसे स्कॉलरशिप भी प्रदान की थी। PHD के बाद ताइवान सरकार ने उन्हें अपने ही विश्वविद्यालय से आगे के अध्ययन को जारी रखने का प्रस्ताव भी दिया है।