फतेहपुर/कार्यालय
रात्रि के 06-08 घंटे जिला अस्पताल में होते हैं भारी, जब नहीं होता ऑक्सीजन गैस का स्टाक।
-अधिकारिक शिथिलता और अव्यवस्थित मानसिकता के चलते हो रही जनहानि, प्रशासन एवं स्वास्थ्य तंत्र को नहीं रहा बीमारों से जैसे कोई वास्ता।
-माननीय भी गंभीर नहीं, जनपद में ऑक्सीजन का संकट नहीं, व्यवस्था पढ़ रही जीवन पर भारी, गैर जनपदों के रोजाना होते है सैकड़ों सिलेंडरों की रिफलिंग…।
-मामला शासन स्तर तक पहुंचने के बाद जागा प्रशासन, कालाबाजारियो पर कशी लगाम, बाकरगंज इलाके में पकड़े गए 90 ऑक्सीजन सिलेंडर।
आक्सीजन की उपलब्धता के बाबत शासन प्रशासन के दावे कुछ भी हों किंतु जमीनी हकीकत इससे अलग है। जनपद मुख्यालय में स्थित सदर अस्पताल में आवश्यकता से कही कम गैस सिलेंडर होने के कारण रात्रि में 06-08 घण्टे तक मरीजों को तड़पना पड़ता है, इस दौरान रोजाना 04-06 लोगों की मौत भी हो रही है। जिला प्रशासन एवं स्वास्थ्य महकमा इस बाबत कतई गंभीर नहीं है। नतीजतन व्यवस्था होने के बावजूद अव्यवस्था हावी है और इसके कारण जनहानि का सिलसिला जारी है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में सदर अस्पताल में कुल 15 ऑक्सीजन के बड़े सिलेंडर है, जिनमे 02 सिलेंडरो के नोजुल कई दिनों से खराब होने के कारण सिर्फ़ 13 सिलेंडर ही रिफिल होते हैं। इन सिलेंडरो का रिफलिंग रूटीन भी संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। प्रशासनिक जिम्मेदार एवं स्वास्थ्य अधिकारी अगर 10-15 सिलेंडरों की अतिरिक्त व्यवस्था करवा दे दो कम से कम सदर अस्पताल में जनहानि के सिलसिले को काफी हद तक रोका जा सकता है। सदर अस्पताल के ऑक्सीजन सिलेंडरो की रूटीन रिफलिंग का तरीका भी मौजूदा दौर की आवश्यकता से कतई मेल नहीं खाता। औसतन 13 सिलेण्डर सुबह 08 से 8.30 बजे के करीब मुरारी गैस प्लांट मलवा से रिफिल करवाकर मंगाए जाते हैं। सदर अस्पताल के तीनों वार्डो में भर्ती होने वाले मरीजों के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए औसतन 04 सिलेंडर पिन-अप होते हैं, जो 02 से 2.30 घण्टे में खाली हो जाते हैं। कभी कभार ही तीन घण्टे चलते हैं। पूरी जुगाड के बाद यह स्टाक अधिकतम 08 से 09 घण्टे का तब हो पाता है जब वार्डो में आपूर्ति की स्पीड को बीच बीच में कम ज्यादा किया जाता है। इस बीच शाय 05 बजे के करीब खाली हुए 05-06 सिलेण्डर की रिफिलिंग बमुश्किल हो पाती है। यह मान भी लिया जाय कि 06-07 बजे तक रिफिल होकर आ जायेंगे तो भी इन सिलेंडरो से मरीजों को आवश्यक ऑक्सीजन की आपूर्ति अधिकतम रात्रि 12:00 से 1:00 बजे तक ही हो पाती है। यानी मध्य रात्रि से सुबह तक का समय बगैर ऑक्सीजन के गुजरता है ऐसे में प्राय देखा गया है कि इस दौरान गंभीर हालत वाले कई कोविड या अन्य बीमारियों से ग्रसित लोगों की जान भी चली जाती है। क्योकि ऑक्सीजन सिलेंडर सुबह 7:30 से 8:00 के मध्य ही रिफिल होकर आप आते हैं। ऐसे में पिनअप की व्यवस्था देख रहे संचालक को कम से कम एक सिलेंडर तो बचा कर रखना ही होता है, वह भी रात्रि के समय ज्यादा हो हल्ला मचने पर 20-25 मिनट के लिए की आपूर्ति का ही माध्यम बनता है। इसके बाद पूरी रात जैसे तैसे भगवान भरोसे कटती है। प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत शासन व जिला प्रशासन के अधिकारी इस संक्रमण काल में ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता का दावा करते रहे हैं। नौकरशाहों का दावा गलत भी नहीं कहा जा सकता है किन्तु वास्तव में स्वास्थ्य व्यवस्था के अधिकारी इस मद में गंभीर नहीं हैं। इनके गंभीर न होने से सदर अस्पताल के हफ्तों से खराब पड़े दो सिलेंडरो के नोजुल तक नहीं बदले जा सके हैं, जिनको दुरुस्त होने में बमुश्किल आधे घंटे का समय और डेढ़ सौ रुपए का खर्चा है। अस्पताल सूत्रों के अनुसार उनके पास प्रायः रात्रि के समय का ऑक्सीजन स्टाक नहीं होता, इस बाबत कई बार उच्चाधिकारियों को जानकारी भी दी गई किन्तु किसी ने आवश्यक क़दम उठाना मुनासिब नहीं समझा…। जानकार बताते हैं कि कम से कम 07 ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था और हो जाए तो रात के समय उत्पन्न होने वाली समस्या से निजात मिल जाएगी और इस दरमियान होने वाली जनहानि को भी रोका सकता है। सदर अस्पताल में आक्सीजन सिलेंडरों की आज की आपूर्ति पर गौर करें तो मिलता है कि सुबह 7:30 बजे करीब 12 सिलेंडर रिफिल होकर आए थे जो दोपहर बाद खत्म हो गए लगभग डेढ़ घंटे तक आपूर्ति की गति धीमी कर काम चलाया गया, उसके बाद देर शाम 7 सिलेंडर और प्राप्त होने की खबर है जो अधिकतम रात्रि 12:00 बजे तक ही मरीजों के लिए जीवन रक्षक ऑक्सीजन की आपूर्ति कर पाएंगे। इसके बाद क्या होगा यह तो भगवान भरोसे ही है…। वहीं मुरारी गैस प्लांट मलवा के संचालक से जब इस संदर्भ में वार्ता की गई तो उनका कहना था कि ऑक्सीजन गैस की कोई समस्या नहीं है। उन्हें जैसे ही खाली सिलेंडर मिलता है जल्द से जल्द रिफिल करा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि 02, 04,10 नहीं 100-200 सिलेंडरों को भी रिफिल करने में कोई समस्या नहीं है। शर्त सिर्फ इतनी है कि खाली सिलेण्डर मिलते रहे। अब सवाल यह उठता है कि क्या जनपद के माननीय व अधिकारी खाली सिलेण्डर की व्यवस्था क्यों नहीं करवा पा रहे हैं। या यू कहें कि वह इस मद में गंभीर नहीं हैं। कमोवेश यही स्थिती जनपद के अन्य सीएचसी व पीएचसी की भी है, जहां ऑक्सीजन गैस के सिलेंडर या तो उपलब्ध नहीं है और अगर है तो समय से रिफिल ना होने कारण बड़ी समस्या का सबब बन गए हैं।
बताते चलें कि यह समस्या सिस्टम के गंभीर न होने की है। अन्यथा गैर जनपद कौशाम्बी, रायबरेली, उन्नाव व कानपुर तक ऑक्सीजन गैस के सिलेंडर रिफिल होकर फतेहपुर के प्लांटों से जा रहे हैं। उधर एक अन्य जानकारी के अनुसार जिला अस्पताल के कोटे में 70 ऑक्सीजन गैस के बड़े सिलेंडर है किंतु 15 के अलावा कहां है, इसके बारे में किसी भी जिम्मेदार को कुछ नहीं मालूम। इस सन्दर्भ में जब सीएमओ से जानकारी का प्रयास किया गया तो उनका फोन नहीं उठा। सीएमएस ने कपकपाती आवाज में कहा कि हम अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास कर रहे हैं। कुल मिलाकर माननीयों की सक्रियता का अभाव और अधिकारिक हीला हवाली के चलते ऑक्सीजन गैस का संकट उत्पन्न हुआ है। जो वास्तव में है नहीं…! एक अन्य जानकारी के अनुसार आज दोपहर भाजपा की युवा विंग के कुछ नेताओं ने मुख्यमंत्री कार्यालय को वस्तु स्थिति से अवगत कराया। इसके बाद ऊपर से हुई शक्ती के बाद जिला प्रशासन के अधिकारियों की नींद टूटी और आनन-फानन में देर शाम फतेहपुर शहर के बाकरगंज इलाके में छापामारी कर हफ्तों से ऑक्सीजन सिलेंडरो की कालाबाजारी कर रहे शकील एवं सलमान के पास से 90 बड़े बड़े भरे सिलेंडर बरामद किए गए। बताते हैं कि यह ऑक्सीजन गैस सिलेंडर कालाबाजारी के उद्देश्य से छिपा कर रखे गए थे।