फतेहपुर,संवाददाता,/
-अंकुश लगाने के नाम पर आबकारी की लाचारी या फिर रिश्वत की बीमार।
-शाम होते ही की धुंए कि धुंध में ढक जाता है समूचा इलाका।
-मनमोहक सुगंध भी धुए की दुर्गंध को नहीं कर पाती है समाहित।
-जब रिश्वत का नाता हो गहरा तो कैसे साहस जुटा पाएगा पहरा।
शहर हो या फिर गांव में इन दिनों मादक पदार्थ की बिक्री चरम सीमा में चल रही है। शहर के विभिन्न मोहल्लों में खुली सरकारी भांग की दुकानों से खुलेआम गांजा बेचने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इसको आबकारी विभाग की लाचारी कहा जाए या फिर रिश्वत लेने की बीमारी दोनों ही बातें पूरी तरह से चरितार्थ हो रही है। भांग की दुकानों से खुलेआम गांजा की हो रही बिक्री पर अंकुश लगाने में आबकारी विभाग पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहा है। आबकारी विभाग द्वारा अंकुश न लगा पाने का पूरा फायदा उठाने से खाखी भी अपने आप को पीछे नहीं आंक रही है। यहां पर भी वही कहावत चरितार्थ हो रही है कि तू डाल डाल मैं पात पात। शहर के आईटीआई रोड में स्थित सरकारी देसी शराब की दुकान के पास से भांग की दुकान से गांजा बेचने का काम पूरे शवाब में पहुंच गया है। शाम होते ही यह इलाका गांजा के धुए की धुंध में ढक जाता है और आलम यह है कि समीप के मंदिर से अगरबत्ती और धूपबत्ती की मनमोहक सुगंध भी गांजे के धुए की दुर्गंध को अपने अंदर समाहित नहीं कर पाती है। चर्चा इस बात की भी है कि भांग की दुकान से गांजा की डिलीवरी की सुविधा उपलब्ध है। हैरत की बात तो यह है कि इस दुकान के समीप सुबह से लेकर शाम तक पुलिस का पहरा लगा रहता है किंतु जब रिश्वत का नाता हो गहरा तो अंकुश लगाने का साहस नहीं जुटा पाता है पहरा। बहर हाल कुछ भी हो सरकारी भांग की दुकान गांजा की दुकान में तब्दील होकर रह गई है।