प्रयागराज/संवाद सूत्र
बरसों पहले जिस गंगा को मुफ्त में पढ़ाकर डॉक्टर बनाया उसने अपने गुरु को मौत के मुंह से बाहर खींच लिया। ऐसा करके डॉक्टर गंगा ने गुरु शिष्य परम्परा को नई ऊर्जा भी दी है। सैदाबाद स्थित राजकीय पीजी कॉलेज में जंतु विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर एके वर्मा ने बताया कि पंचायत चुनाव में उनकी ड्यूटी लगी थी। 16 अप्रैल को कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। पहले एक सप्ताह तक घर पर ही इलाज किया। ऑक्सीजन लेवल 85 पर आ गया। तब याद आए शंकरगढ़ निवासी डॉक्टर गंगा सिंह। डॉ. वर्मा को 25 अप्रैल को स्वरूपरानी नेहरू मेडिकल कॉलेज के क्रिटिकल वार्ड में भर्ती कराया गया। यहां वह 10 दिन तक वेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत से जूझते रहे। इस वक्त उनके साथ बस गंगा थे। गंगा ने अपने गुरु की दिन-रात देखभाल की और नई जिंदगी दी।
भाई-बहन को मुफ्त में पढ़ाया था
डॉ. एके वर्मा बताते हैं कि पहले वह मेडिकल की कोचिंग चलाते थे। एक दिन गंगा के पिता राम गोपाल कोचिंग आए और उनसे मिले। उन्होंने अपनी बेटी को डॉक्टर बनाने की इच्छा जाहिर की। अफसोस जताते हुए बोले, सर हम आपको फीस नहीं दे पाएंगे। इस पर डॉ. वर्मा बोले कोई बात नहीं। आप बस बेटी को पढने को भेजिए। बेटी साध्वी सिंह ने पहले ही साल 2013 में मेडिकल इंट्रेंस निकाल लिया। इसके दो साल बाद राम गोपाल अपने साथ बेटे गंगा को लेकर भी आए। गंगा तब 11वीं क्लास में थे। डॉ. वर्मा ने पूछा क्या बनोगे? इंजीनियर। लेकिन डॉक्टर वर्मा बोले-गोपालजी इसे मेरे पास भेजिए, मैं इसे डॉक्टर बनाऊंगा।
ड्यूटी के साथ निभाया शिष्य का फर्ज
डॉ. गंगा फिलहाल सीएचसी कौंधियारा, प्रयागराज में तैनात हैं। डॉ. वर्मा की सेवा के दौरान कभी भी उन्होंने अपने फर्ज से मुंह नहीं मोड़ा। सुबह कौंधियारा ड्यूटी जाने से पहले वो रोज दो घंटे डॉ. वर्मा के पास बिताते थे। इस दौरान उनको ब्रश कराना, वॉशरूम ले जाना, कपड़े बदलवाना, हाथ-पैर, कमर की मालिश करना, नाश्ता कराने जैसे सारे रूटीन का काम कराते थे। दवाएं क्या दी गईं, क्या नहीं, नेबुलाइजेशन हुआ या नहीं? इन सबका भी ध्यान रखते थे। इसके बाद ही गंगा अपने सीएचसी जाते थे। वहां भी वो कोरोना मरीजों को देखते। शाम को वहां से छूटने के बाद सीधे डॉ. वर्मा के वार्ड में पहुंच जाते। रात में भी दो घंटा समय बिताने के बाद देर रात घर लौटते।
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